संघीय अदालत ने ट्रंप के 2025 टैरिफ पर लगाई रोक: वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए क्या है इसका मतलब
यहां पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के "लिबरेशन डे" टैरिफ, उनके शुरू होने की पृष्ठभूमि, वैश्विक आर्थिक प्रभाव और हालिया संघीय अदालत के फैसले का विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।
"लिबरेशन डे" टैरिफ की शुरुआत
2 अप्रैल, 2025 को, पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने "लिबरेशन डे" टैरिफ की घोषणा की, जिसके तहत उपभोक्ता और औद्योगिक आयातों पर समान रूप से 10% शुल्क लगाया गया। यह कदम अंतरराष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्तियां अधिनियम (IEEPA) के तहत लिया गया, जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय आर्थिक खतरों का हवाला दिया। इस कदम का उद्देश्य चीन, यूरोपीय संघ और मेक्सिको जैसे व्यापारिक साझेदारों पर फिर से व्यापार समझौते करने का दबाव बनाना था।
हालांकि, आलोचकों का कहना था कि यह कार्यपालिका की शक्तियों का अति प्रयोग था और इसके पीछे किसी स्पष्ट राष्ट्रीय आपात स्थिति का आधार नहीं था।
वैश्विक आर्थिक प्रभाव
इन टैरिफ्स के लागू होने के बाद विश्व अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़े:
वैश्विक विकास में मंदी: अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने 2025 के लिए अपनी वैश्विक विकास दर का पूर्वानुमान 3.3% से घटाकर 2.8% कर दिया, जिसका मुख्य कारण इन टैरिफ्स और व्यापार तनावों को बताया गया।
महंगाई में वृद्धि: आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) ने बताया कि टैरिफ्स के कारण महंगाई दर में तेजी आई है, और अमेरिका में 2025 में महंगाई दर 2.8% तक पहुँचने का अनुमान है।
व्यापारिक साझेदारों पर असर: अमेरिका पर आयात पर निर्भर देशों की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ा। उदाहरणस्वरूप, मेक्सिको की अर्थव्यवस्था में 2025 में 1.3% की गिरावट का अनुमान था, जबकि कनाडा की विकास दर 0.7% तक सिमट गई।
उपभोक्ताओं पर बोझ: अमेरिकी उपभोक्ताओं को आयातित वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि के कारण अतिरिक्त लागत उठानी पड़ी, जिसका अनुमान $120 से $225 अरब डॉलर प्रतिवर्ष तक लगाया गया।
संघीय अदालत का फैसला
28 मई, 2025 को, यू.एस. कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड ने V.O.S. Selections, Inc. बनाम अमेरिका मामले में फैसला सुनाया कि "लिबरेशन डे" टैरिफ IEEPA के तहत प्रदत्त अधिकारों की सीमा से बाहर हैं।
अदालत ने पाया कि ये टैरिफ किसी वास्तविक राष्ट्रीय आपात स्थिति पर आधारित नहीं थे और कार्यपालिका द्वारा विधायी शक्तियों का अनुचित प्रयोग थे। परिणामस्वरूप, अदालत ने इन टैरिफ्स के प्रवर्तन पर स्थायी निषेधाज्ञा (permanent injunction) जारी कर दी।
इस फैसले में खासतौर पर IEEPA का गलत उपयोग रेखांकित किया गया, जिसमें बिना स्पष्ट आपातकाल के व्यापक टैरिफ लगाए गए। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि व्यापार घाटा (trade deficit) कोई राष्ट्रीय आपात स्थिति नहीं है। हालांकि, यह निर्णय अन्य कानूनों जैसे Section 301 या Section 232 के तहत लगाए गए टैरिफ्स पर लागू नहीं होता।
हालांकि, 1974 व्यापार अधिनियम के तहत, ट्रंप को 15% तक और 150 दिनों के लिए सीमित टैरिफ लगाने की अनुमति अब भी मिल सकती है।
बाज़ार की प्रतिक्रिया
अदालत के इस निर्णय का वित्तीय बाज़ारों पर त्वरित प्रभाव पड़ा:
शेयर बाज़ार में तेजी: अमेरिकी स्टॉक फ्यूचर्स में उछाल आया, जिसमें S&P 500 फ्यूचर्स 1.7% और डॉव फ्यूचर्स 1.4% तक बढ़ गए।
मुद्रा और कमोडिटी बाज़ार: अमेरिकी डॉलर प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले मजबूत हुआ, और कच्चे तेल की कीमतों में भी वृद्धि हुई — जिससे निवेशकों में नए सिरे से विश्वास झलका।
वैश्विक बाज़ार में सकारात्मक संकेत: एशियाई बाज़ारों, विशेष रूप से जापान के निक्केई में भी तेजी देखी गई, क्योंकि व्यापार तनावों में राहत और सहायक मौद्रिक नीतियों ने सहारा दिया।
भविष्य की संभावनाएं
हालांकि अदालत ने "लिबरेशन डे" टैरिफ को अमान्य करार दिया है, लेकिन यह निर्णय अन्य टैरिफ्स पर लागू नहीं होता जो Section 301 या Section 232 जैसे अन्य वैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत लागू किए गए थे।
ट्रंप प्रशासन ने इस निर्णय के खिलाफ अपील की है, लेकिन अंतिम परिणाम अभी भी अनिश्चित है।
यह निर्णय व्यापार नीति में कानूनी ढांचे के महत्व को रेखांकित करता है और संभव है कि भविष्य की सरकारें अंतरराष्ट्रीय व्यापार संबंधों में अधिक सहयोगात्मक दृष्टिकोण अपनाएँ।
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